औरैया- सुप्रीम कोर्ट ने सेवानिवृत्त सैनिकों के लिए लागू वन रैंक वन पेंशन (OROP) की नीति को सही ठहराते हुए अपना निर्णय देते हुए कहा कि इसमें कोई संवैधानिक कमी नहीं है। जिला सैनिक कल्याण एवं पुनर्वास अधिकारी कर्नल संजीव कुमार वार्ष्णेय जिनका सेना में विधि अधिकारी के रूप में लंबा अनुभव है ने बातचीत के दौरान बताया कि कि सुप्रीम कोर्ट ने वन रैंक वन पेंशन के मामले में अपना 64 पेज का निर्णय सुना दिया है. शीर्ष अदालत के अनुसार केंद्र सरकार ने 7 नवंबर 2015 को वन रैंक वन पेंशन योजना(ओरोप) की अधिसूचना जारी की थी इसमें हर 5 साल में पेंशन की समीक्षा का प्रावधान है वह ठीक है। अब इसी प्रावधान के तहत सरकार 1 जुलाई 2019 की तारीख से पेंशन की समीक्षा करे और तीन महीने में बकाया का भुगतान करे. कर्नल संजीव ने यह भी कहा कि याचिकाकर्ता भारतीय भूतपूर्व सैनिक आंदोलन (आईईएसएम) ने सरकार के वन रैंक वन पेंशन नीति के फैसले को यह कहते हुए चुनौती दी थी कि यह फैसला मनमाना और दुर्भावनापूर्ण है. दरअसल, केंद्र सरकार ने 7 नवंबर 2015 को वन रैंक वन पेंशन योजना(One Rank One Pension) की अधिसूचना जारी की थी जिसमें कहा गया था कि इस योजना की समीक्षा पांच वर्षों में की जाएगी लेकिन भूतपूर्व सैनिक संघ की मांग थी कि इसकी समीक्षा हर एक साल के बाद हो। इसी बात को लेकर दोनों पक्षों के बीच मतभेद चल रहा था।
जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस विक्रम नाथ की बेंच ने कहा कि वन रैंक वन पेंशन (OROP) पर केंद्र के फैसले में कोई दोष नहीं है और सरकार के नीतिगत मामलों में न्यायालय का हस्तक्षेप उचित नहीं है। अदालत ने निर्देश दिया कि सरकार 1 जुलाई 2019 की तारीख से पेंशन की समीक्षा करे और 3 महीने में बकाया का भुगतान करे। भूतपूर्व सैनिक संघ द्वारा दायर इस याचिका में भगत सिंह कोश्यारी समिति द्वारा पांच साल में एक बार होने वाली समीक्षा के बजाय हर साल होने वाले संशोधन के साथ एक रैंक-एक पेंशन को लागू करने की मांग की गई थी।
इससे पहले 16 फरवरी की सुनवाई में याचिका में केंद्र सरकार पर सवाल उठाए गये थे और कहा था कि कि सरकार ने संसद में जो कहा था वैसा लागू नहीं किया और पूर्व सैनिकों को सही मायने में वन रैंक वन पेंशन का लाभ नहीं मिला है। इस पर केंद्र ने अपना बचाव करते हुए कहा था कि यह मंत्रिमंडल का लिया गया फैसला है। और सुप्रीम कोर्ट ने भी कहा कि OROP की कोई वैधानिक परिभाषा नहीं है, और ऐसा कोई कानूनी आधार नहीं है कि एक रैंक से रिटायर हुए सभी व्यक्तियों को एक समान पेंशन मिले. औरैया जनपद के हजारों पूर्व सैनिकों को आशा है कि 1 जुलाई 1919 से पेंशन की समीक्षा होने पर उन्हें कुछ न कुछ लाभ अवश्य मिलेगा।