Minimum Support Price: MSP एक न्यूनतम मूल्य गारंटी है जिसका अर्थ है, फसल की वह न्यूनतम दर जिस पर किसान से फसल खरीदी जाएगी । न्यूनतम समर्थन मूल्य किसानों के लिए सुरक्षा कवच या बीमा के रूप में कार्य करता है जब वे अपनी विशेष फसलो को बेचते हैं। ये फसलें सरकारी एजेंसियों या निजी एजेंसियों द्वारा स्थापित किये गए क्रय केन्द्रों पर किसानों से एक निर्धारित मूल्य पर खरीदी जाती हैं और किसी भी स्थिति में एमएसपी में बदलाव नहीं किया जा सकता है। इसलिए, MSP की अवधारणा देश में किसानों को उन स्थितियों में बचाती है, जहां फसलों की कीमतों में भारी गिरावट आती है। गेहूं और चावल उन शीर्ष फसलों में से हैं जो देश के किसानों से सरकार द्वारा MSP पर खरीदी जाती हैं। एमएसपी के तहत लगभग 22-23 फसलें खरीदी जाती हैं ।
विपणन मौसम 2020-21 के लिए सभी खरीफ फसलों के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य इस प्रकार हैं:
सरकार ख़रीदे गये अनाज का क्या करती है ?
सरकार एमएसपी पर फसलों को खरीद कर एफसीआई और नेफेड के गोदामों में रखती है और यही अनाज सार्वजानिक वितरण प्रणाली(PDS) के माध्यम से गरीबों उपभोक्ताओं को सस्ते और रियायती कीमतों पर आवश्यक उपभोग की वस्तुएं जैसे गेहूं, चावल, चीनी मिटटी का तेल आदि वस्तुएं प्रदान करना है जिससे उन्हें वस्तुओं की बढती हुई कीमतों के प्रभाव से बचाया जा सके और जनसंख्या के न्यूनतम पोषण की स्थिति एवं स्तर को भी बनाए रखा जा सके।
MSP अस्तित्व में कब और कैसे आया?
द्वितीयविश्व युद्ध के दौरान अंग्रेजों द्वारा शुरू की गई राशन प्रणाली में इसकी उत्पत्ति है। खाद्य विभाग 1942 में आया था। आजादी के बाद, इसे खाद्य मंत्रालय में अपग्रेड किया गया था। यह वो समय था , जब भारत को भोजन की भारी कमी का सामना करना पड़ा था। 1960 के दशक में जब हरित क्रांति की शुरुआत हुई, तो भारत सक्रिय रूप से अपने खाद्य भंडार को कम करने और कमी को रोकने के लिए सक्रिय था। एमएसपी प्रणाली अंततः गेहूं के लिए 1966-67 में शुरू हुई और अन्य आवश्यक खाद्य फसलों को शामिल करने के लिए इसका विस्तार किया गया।
MSP को कौन निर्धारित करता हैं?
एमएसपी केंद्र सरकार द्वारा चुनिंदा फसलों के लिए निर्धारित किया जाता है, जो कृषि लागत और मूल्य आयोग (सीएसीपी) से प्राप्त सिफारिशों के आधार पर किया जाता है। CACP को MSP का निर्धारण करने का काम सौंपा जाता है | एमएसपी का निर्धारण करने के लिए सीएसीपी खेती की लागत को 3 भागों में विभाजित करता है। पहला भाग A2, दूसरा भाग A2+FL एवं तीसरा भाग C2, A2 में फसल का उत्पादन करने के लिए किसानों द्वारा किए गए सभी प्रकार के नकदी खर्च जैसे- बीज, उर्वरक, ईंधन और सिंचाई आदि की लागत शामिल होती है जबकि A2+FL में नकद खर्च के साथ पारिवारिक श्रम का अनुमानित मेहनताना भी शामिल किया जाता है। वहीं C2 में खेती के व्यवसायिक मॉडल को अपनाया जाता है। इसमें कुल नकद व्यय और किसान के पारिवारिक श्रम के अतिरिक्त खेत की जमीन का किराया और कुल व्यय हुयी कृषि पूंजी पर लगने वाला ब्याज भी शामिल किया जाता है।
न्यूनतम समर्थन मूल्य एवं कानून
यह कुछ हद तक अजीब है कि न्यूनतम समर्थन मूल्य की अवधारणा किसानों की आय बढ़ाने का एक महत्वपूर्ण पहलू है लेकिन इसका किसी भी कानून में कोई उल्लेख नहीं है, भले ही वह दशकों से क्यों न हो। जबकि सरकार साल में दो बार MSP की घोषणा करती है, लेकिन MSP को अनिवार्य बनाने वाला कोई कानून नहीं है। इसका मतलब यह है कि सरकार किसानों से उनकी फसलें न्यूनतम समर्थन मूल्य पर खरीदती तो है, लेकिन ऐसा करने के लिए कानून द्वारा बाध्य नहीं है।