वैसे भी प्राचीन समय से ही सनातन धर्मी हिन्दू दिन के प्रकाश में ही शुभ कार्य करने के समर्थक रहे हैं। तब हिन्दुओं में रात की विवाह की परम्परा कैसे पड़ी ?
कभी हम अपने पूर्वजों के सामने यह सवाल क्यों नहीं उठाते हैं या स्वयं इस प्रश्न का हल क्यों नहीं खोजते हैं ?
दरअसल भारतवर्ष में सभी उत्सव, सांस्कृतिक कार्यक्रम एवं संस्कार दिन में ही संपन्न किये जाते थे चूंकि ये सनातनी परम्परा है। सीता माता और द्रौपदी का स्वयंवर भी दिन में ही संपन्न हुआ था। शिव विवाह से लेकर संयोगिता स्वयंवर (बाद में पृथ्वीराज चौहान जी द्वारा संयोगिता जी की इच्छा से उनका अपहरण) आदि सभी शुभ कार्यक्रम दिन में ही संपन्न होते थे।
प्राचीन काल से लेकर मुगलों के आने तक भारत में विवाह दिन में ही संपन्न हुआ करते थे। मुस्लिम आक्रमणकारियों के भारत पर हमले करने के बाद ही, हिन्दुओं को अपनी कई प्राचीन परम्पराएं बदलने को विवश होना पड़ा था।मुस्लिम आक्रमणकारियों द्वारा भारत पर अतिक्रमण करने के बाद भारतीयों पर बहुत अत्याचार किये गये।ये आक्रमणकारी हिन्दुओं के विवाह के समय वहां पहुंचकर लूटपाट मचाते थे। अकबर के शासन काल में, जब अत्याचार चरमसीमा पर था , मुग़ल सैनिक हिन्दू लड़कियों को बलपूर्वक उठा लेते थे और उन्हें अपने आकाओं को सौंप देते थे।
भारतीय ज्ञात इतिहास में सबसे पहली बार रात्रि में विवाह सुन्दरी और मुंदरी नामक दो ब्राह्मण बहनों का ब्राह्मण युवकों के साथ दुल्ला भट्टी के संरक्षण में संपन्न हुआ था। उस समय दुल्ला भट्टी ने मुस्लिम आक्रांताओं के अत्याचार के विरुद्ध शस्त्र (हथियार) उठाये थे। दुल्ला भट्टी ने ऐसी अनेक लड़कियों को मुगलों के चंगुल से आजाद करवाकर , उनके विवाह हिन्दू लड़कों से संपन्न करवाए थे।
इसके बाद मुस्लिम आक्रमणकारियों के आतंक से बचने के लिए हिन्दू रात्रि के अँधेरे में विवाह संपन्न करने पर मजबूर होने लगे। उस समय रात्रि में विवाह संपन्न करने के लिए हिन्दुओं ने यह भी ध्यान रखा की विवाह की कुछ रश्मे जैसे नाचना-गाना, दावत, जयमाला, आदि भले ही रात्रि में हो जाए लेकिन विवाह की मुख्य रश्म अर्थात सात फेरे वैदिक मन्त्रों के साथ प्रात:काल(पौ फटने के बाद) ही हों।
पंजाब से प्रारम्भ हुई परंपरा को पंजाब में ही समाप्त किया गया।
फिल्लौर से लेकर काबुल तक महाराजा रंजीत सिंह का आधिपत्य हो जाने के बाद उनके सेनापति हरीसिंह नलवा ने सनातन वैदिक परम्परा अनुसार दिन में विवाह संपन्न करने और उनको सुरक्षा देने की घोषणा की थी। हरीसिंह नलवा के संरक्षण में हिन्दुओं ने दिनदहाड़े – बैंडबाजे के साथ विवाह शुरू किये। तब से पंजाब में फिर से दिन में विवाह संपन्न करने की परंपरा शुरू हुई। पंजाब में अधिकांश विवाह आज भी दिन में ही संपन्न होते हैं।
महाराष्ट्र, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, केरल, असम, मणिपुर, नागालैंड, त्रिपुरा एवम् अन्य राज्य भी धीरे धीरे अपनी जड़ों की ओर लोटने लगे हैं। और दिन में ही विवाह संपन्न करने लगे हैं। हरीसिंह नलवा ने मुसलमान बने हिन्दुओं की घर वापसी कराई (अर्थात पुन: हिन्दू धर्म अपनाया) , मुसलमानों पर जजिया कर लगाया एवं हिन्दू धर्म की परम्पराओं को फिर से स्थापित किया। इसीलिए उनको “पुष्यमित्र शुंग” का अवतार कहा जाता है।
सभी विवाह सर्वश्रेष्ठ मुहूर्त-ब्रह्ममुहूर्त में ही संपन्न किये जाते हैं। ध्रुवतारा को स्थिरता के प्रतीक रूप में प्रस्तुत किया जाता है, जो ब्रह्ममुहूर्त में ही सबसे अच्छा दृष्टिगोचर (दिखाई देना) होता है । सूर्य के प्रतीक स्वरूप अग्नि को ही साक्षी माना जाता है। इसीलिए अग्नि के ही चारों ओर फेरे लिए जाने की विधि है।
आर्य समाज के संस्थापक स्वामी दयानंद सरस्वती ने भी अपनी पुस्तक सत्यार्थ प्रकाश में रात्रि विवाह का पूर्ण खण्डन किया है। पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य के अनुसार भी हिन्दू गायत्री परिवार में विवाह दिन में ही सम्पन्न किये जाते हैं ।
आज भी हम भारत के लोग (विशेषकर उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश एवं बिहार राज्य के लोग) मुसलमानों के अतिक्रमण से हुए परिवर्तन को परंपरा मानकर उसे चला रहे हैं जबकि 400 साल हो गए मुगल यहां से जा चुके हैं। असल में हम गुलामी की मानसिकता से उबरना ही नहीं चाहते हैं ।
Source : गौ गीता गंगा और गायत्री