श्रीकृष्ण जन्मभूमि-शाही ईदगाह विवाद: मथुरा में स्थित श्रीकृष्ण जन्मभूमि-शाही ईदगाह विवाद ने एक नया मोड़ लिया है। इलाहाबाद हाई कोर्ट ने मुस्लिम पक्ष की आपत्तियों को खारिज करते हुए हिंदू पक्ष की याचिकाओं को सुनवाई योग्य माना है। यह विवाद, जो ऐतिहासिक और धार्मिक महत्व का है, अब ट्रायल के दौर से गुजरेगा।
श्रीकृष्ण जन्मभूमि-शाही ईदगाह विवाद की पृष्ठभूमि
यह विवाद श्रीकृष्ण जन्मभूमि और शाही ईदगाह मस्जिद के बीच की जमीन को लेकर है। हिंदू पक्ष का दावा है कि मुगल सम्राट औरंगजेब के आदेश पर श्रीकृष्ण जन्मस्थली पर बने मंदिर को ध्वस्त कर शाही ईदगाह का निर्माण किया गया था। हिंदू पक्ष की याचिकाओं में इस जमीन को हिंदुओं का बताते हुए वहां पूजा का अधिकार मांगा गया है। वहीं, मुस्लिम पक्ष का कहना है कि इस जमीन पर दोनों पक्षों के बीच 1968 में समझौता हुआ था, जिसे 60 साल बाद बदलना उचित नहीं है।
इलाहाबाद हाई कोर्ट ने मुस्लिम पक्ष की आपत्तियों को नकारा
न्यायमूर्ति मयंक कुमार जैन की अध्यक्षता वाली बेंच ने बुधवार को मुस्लिम पक्ष की आपत्तियों से जुड़ी याचिका को खारिज कर दिया। अदालत ने अपने फैसले में कहा कि मालिकाना हक को लेकर हिंदू पक्ष की याचिकाएं सुनवाई योग्य हैं और इन पर ट्रायल जारी रहेगा। इस फैसले से हिंदू पक्ष को बड़ी राहत मिली है और अब इस विवाद से जुड़े मामलों में ट्रायल शुरू होगा।
हिंदू पक्ष की दलीलें
- श्रीकृष्ण विराजमान का गर्भगृह: हिंदू पक्ष का दावा है कि शाही ईदगाह का पूरा ढाई एकड़ एरिया श्रीकृष्ण विराजमान का गर्भगृह है।
- भूमि का रेकॉर्ड: शाही ईदगाह मस्जिद कमेटी के पास भूमि का कोई ऐसा रेकॉर्ड नहीं है, जो यह सिद्ध करता हो कि यह जमीन उनके स्वामित्व में है।
- मंदिर का ध्वस्तिकरण: हिंदू पक्ष का आरोप है कि श्रीकृष्ण मंदिर तोड़कर शाही ईदगाह मस्जिद का निर्माण किया गया है।
- वक्फ संपत्ति: हिंदू पक्ष का कहना है कि बिना स्वामित्व अधिकार के वक्फ बोर्ड ने बिना किसी वैध प्रक्रिया के इस भूमि को वक्फ संपत्ति घोषित कर दिया है।
मुस्लिम पक्ष की दलीलें
- समझौता: मुस्लिम पक्ष का कहना है कि इस जमीन पर दोनों पक्षों के बीच 1968 में समझौता हुआ है और 60 साल बाद इसे गलत बताना ठीक नहीं है।
- प्लेस ऑफ वर्शिप एक्ट 1991: मुस्लिम पक्ष का हवाला है कि प्लेस ऑफ वर्शिप एक्ट 1991 के तहत 15 अगस्त, 1947 के दिन जिस धार्मिक स्थल की पहचान और प्रकृति जैसी थी, वह वैसी ही बनी रहनी चाहिए। यानी उसकी प्रकृति नहीं बदली जा सकती है।
- मुकदमा सुनवाई योग्य नहीं: मुस्लिम पक्ष का तर्क है कि इस कानून के तहत मुकदमा सुनवाई योग्य नहीं है।
आगे की राह
इलाहाबाद हाई कोर्ट के इस फैसले के बाद अब इस विवाद का ट्रायल शुरू होगा। यह ट्रायल भारतीय न्याय प्रणाली के लिए एक महत्वपूर्ण परीक्षा होगी, जिसमें न्याय की परिभाषा और धार्मिक स्थलों के स्वामित्व के सवालों का उत्तर तलाशा जाएगा। इस फैसले ने हिंदू पक्ष को उम्मीद दी है कि वे अपने धार्मिक स्थल को पुनः प्राप्त कर सकेंगे, वहीं मुस्लिम पक्ष इस फैसले को चुनौती देने के लिए तैयार है।
इस विवाद के ट्रायल की शुरुआत के साथ ही देश भर की नजरें इस ऐतिहासिक मामले पर टिक गई हैं। यह देखना दिलचस्प होगा कि न्यायालय किस प्रकार से इस विवाद का समाधान निकालता है और कैसे यह फैसला देश की धार्मिक और सामाजिक संरचना को प्रभावित करता है।